यम

‘पातंजल योग सुत्र’ मे बताया गया है कि अहिंसा-

सत्यास्तेय ब्रह्यचर्या परिग्रहा यमाः।
अर्थात् अहिंसा, सत्य, आस्तेय, ब्रह्यचर्य तथा अपरिग्रह को ‘यम’ कहते है।
अहिंसा – मन, वचन और कर्म से किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार का दुख न देना अहिंसा है।

सत्य – प्रत्येक प्राणी के हित में झुठ न बोलने की क्रिया को सत्य कहते है। मंडुकोपनिषद मे सत्य की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि
‘सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पंथा विततो देवयानः सत्येन लभ्यस्तप।
‘साहृेष आत्मा’ अर्थात् प्रारम्भ मे भले ही कष्ट, बाधा या परेशानियों को सामना करने पडे़, पर अन्त मे विजय सत्य की होती है।
अस्तेय – मन, वचन, कर्म से दूसरे के द्रव्य की न तो इच्छा करना न अनधिकृत रूप से प्राप्त करना अस्तेय कहलाता हैं।

कर्मणा मनसा वाचा परद्रव्येषु निःस्पृह।
आस्तेयमिति सम्प्रोक्तमृषिभिस्तत्वर्दशिभिः।।

ब्रह्यचर्य – महर्षीव्यास कहा है –
“ब्रह्यचर्य गुप्तेन्द्रिय स्थोपस्थस्य संयमः।”
अर्थात् गुप्तेन्द्रिय से प्राप्त सभी प्रकार के सुखो को त्यागना ही ब्रह्यचर्य है।

‘दक्ष संहिता’ मे मैथुन के आठ प्रकार बतलाये गये है।

स्मरण – प्रिया या सुंदर स्त्री का स्मरण करना

कीर्तन – प्रिया की बातो का रसपूर्वक वर्णन करना

हँसी मजाक – किसी स्त्री से हँसी मजाक करना

राग दर्शन – किसी भी स्त्री को मोहयुक्त लोलुप दृष्टि से देखना

वार्तालाप – पर स्त्री से एकान्त या निर्जन स्थान पे बातचीत करना

संकल्प – पर स्त्री से रति निवेदन करना

मैथुन-प्रयत्न – संभोग के लिये उद्यत होना या प्रयत्न करना

मैथुन – पर स्त्री के साथ प्रत्यक्ष मैथुन करना

साधक को इस आठ प्रकार के मैथुनो से बचना चाहिये। घेरण्ड संहिता के अनुसार अपनी स्त्री से उचित समय पर मैथुन करने से ब्रह्यचर्य खंडित नही होता। साधक को अपरिग्रही होना चाहिये।

अपरिग्रह- अपने लिये सभी प्रकार के सुख, भोग, धन, संपदा आदि के त्याग को अपरिग्रह कहते है।

श्रीमद्भागवत में श्री व्यास जी ने “यम” के बारह प्रकार बतलाये है।

अहिंसा
सत्य
आस्तेय
असंग
लज्जा
अपरिग्रह
आस्तिकता
ब्रह्यचर्य
मौन
स्थिरता
क्षमा
अभय

इसका पालन ‘यम’ नियम पालन कहलाता है।