प्राणायाम

प्राणायाम:- याज्ञवल्क्य ने प्राणायाम की महिमा वर्णित करते हुए कहा है

प्राणायाम पराः सर्वे प्राणायाम परायणाः।
प्राणायामै विशुद्धा ये ते यान्ति परमां गतिम् ।।

मानव देह का अधारभूत, नाड़िया व उसमे बहने वाला शुद्ध रक्त है, इन नाड़ियो का मंजन व रक्त का शोधन प्राणायाम के माध्यम से ही संभव है। प्राणायाम के द्वारा ही श्वास स्पन्दन सुषुम्ना मे प्रवेश कराया जाता है, जिससे शरीर के समस्त विकार दुर हो जाते है तथा शरीर किसी भी प्रकार की साधना के लिए तैयार हो जाता है। योग सुत्र में बताया है कि श्वास प्रश्वास-गति को अवरोधन कराना ही प्राणायाम है।

प्राणायाम के तीन भाग मुख्य है –
रेचक:- प्रश्वास (अन्दर से बाहर निकलने वाला श्वास) को नासिका छिद्रों से अत्यन्त धीरे-धीरे निकालने के त्रिज्या को रेचक कहते है।

 पूरक:- शुद्ध वायु को नासिक छिद्रों से धीरे-धीरे अन्दर लेने कि त्रिज्या को पूरक कहते है।

 कुम्भक:- श्वास जो कि बाहर से नासिका छिद्रों द्वारा शरीर के अन्दर लिया है, इसे भरपूर लेकर अन्दर ही रोके रखने को कुम्भक कहते है।

योग ग्रन्थों से कुम्भक के आठ भेद बताये है –

सुर्य भेदी, उज्जयी, शीतकरी, शीतला, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूच्र्छा, प्लाविनी

यहा हमें इन भेदो को स्पष्ट करने कि आवश्यकता नहीं है, योग्य गुरू के सान्निध्य में इन भेदो को विधिवत् अभ्यास किया जा सकता है।