आसन
योग का तृतिय महत्वपूर्ण चरण आसन है। जीव आत्मा से परमात्मा के जुड़ाव, मन की चित्रवृत्ति को एकाग्र करने तथा शरीर को स्वस्थ रखने के साथ आंतरिक एवंम् बाह्य आवरणो को शुद्ध करने का कार्य आसन करता है। श्रम का हरण करने के साथ मनसा, वाचा, कर्मणा। जीव को परमात्मा से जोड़ने का कार्य आसन सिद्धी से ही संभव है। जीव शरीराध्यास से मुक्त होता है और ध्यान करने में सक्षम होता है। 84 लाख योनियों के अनुसार योगाचार्यो ने योग शास्त्र में 84 लाख आसनो का वर्णन किया है। किन्तु हमारे मानव जीवन में कुछ आसन ही परम उपयोगी है।
जैसे – पद्मासन, स्वास्तिकासन, सिद्धासन, उध्र्वासन, उत्थितपद्मासन, चक्रासन आदि।
साधक जब अपनी साधना में रत रहता है तो एक विशेष प्रकार की शक्ति का संचार उसके शरीर में होता है। उस समय यदि वह पृथ्वी पर बैठा हो तो वह शक्ति पृथ्वी में समा जाती है। अतः साधक को चाहिए कि वह उचित आसन का प्रयोग करे।
आसन ऐसा होना चाहिए जिसपर सुविधापूर्वक निश्चल भाव से बैठा जा सके। घेरण्ड संगीता में 84 प्रकार के आसनो का उल्लेख है पर उनमें 32 आसन ज्यादा लाभदायक है जो अलग-अलग साधनाओ में अलग-अलग रूप से उपयोगी है।
1 सिद्धासन
2 भद्रासन
3 स्वास्तिकासन
4 सिंहासन
5 वीरासन
6 पद्मासन
7 मुक्तासन
8 व्रजासन
9 गौमुखासन
10 धनुरासन
11 मृतासन
12 मत्स्यासन
13 गोरक्षासन
14 उत्कुटासन
15 मयूरासन
16 कूर्मासन
17 मण्डूकसना
18 उत्तान मंडूकासन
19 वृषासन
20 मकरासन
21 भुजंगासन
22 गुप्तासन
23 मत्स्येन्द्रासन
24 उत्तासन
25 संकतासन
26 कुक्कुटासन
27 उत्तुंगासन
28 वृक्षासन
29 गरूड़ासन
30 शलभासन
31 उष्ट्रासन
32 योगासन
साधना के लिए ऋषियो के मत से चार आसन ही अनुकूल एवं उचित है, जो कि निम्न है –
स्वस्तिकासन
समासन
सिद्धासन
पद्मासन
‘कुण्डलिनी योग’ के अनुसार बैठने के लिए मृगासन, व्याघ्रासन आदि का भी उपयोग किया जा सकता है।