दरबार की महिमा

हमारे भारत वर्ष मे अनेक नदीयाॅ है। जिसमे मुख्य तीन नदीयों का विशेष महत्व है। गंगा, यमुना, सरस्वती, जिसमे गंगा नदी का स्वरूप ज्ञान है। अर्थात गंगा को ज्ञान गंगा कहा जाता है। कुछ लोग उन्हे ज्ञान दायनी गंगा भी कहते है। शिव के जप से निकलकर हिमालय के हिम से आच्क्षादीत हो कल-कल निनादंनी गंगा भारत वर्ष के अनेक क्षेत्रो से होती हुई बंगाल की खाड़ी मे महासागर में समाहीत हो जाती है। गंगा के किनारे बसी नगरी काशी को ज्ञानियो की नगरी कही जाती है। 

जिस नगरी को भूत-भावन पतितपावन त्रिनेत्रधारी भगवान भोलेनाथ ने अपने त्रिशुल पर धारण किया है। काशी के महाश्मशान की पवित्र राख अघोरीयो की धुनी सन्तो का भजन वहा के ज्ञानीयो के ज्ञान साधना वैदिको के वेद ज्ञान सम्पूर्ण विश्व में उच्चतम स्थान रखता है। भगवती गंगा ने स्वयं काशी वासीयो को आर्शिवाद दिया है तथा काशी में रहनेवाले प्रत्येक जीव के कल्याण का मार्ग दर्शन किया है।

गंगे तव दशनोथ मुक्तिः
अर्थात भगवती गंगा के दर्शन पात्र से ही जीव मुक्त हो जाता है। फीर गंगा में स्थान का फल कितने अधिक होगा उसका कल्पना करना जीव के सार्मथ से परे है। सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, किन्नर, देवी, देवता भगवती गंगा के स्तुति करते है और कहते है। हे विष्णुपदि हमारा कल्याण करिये भारत के अनेक क्षेत्रो में पापनास्नी, ज्ञानदायनी भगवती गंगा को अलग-अलग नामो से जाना जाता है। ——— — से मिलने के कारण उनका एक नाम जान्हवी भी है।

यमुना:
भगवती यमुना को भक्ति स्वरूपा कहा गया है। यम की बहन होने के कारण भगवती यमुना मृत्यु के पीड़ा का हरण करती है और यमदुतो के श्राफ से बचाती है। जिनके सावले रंग के कारण उनका एक नाम कालिन्दी भी है। भगवान कृष्ण के प्रिया होने के कारण उन्हे कृष्ण प्रिया भी कहा जाता है।

भगवान श्री कृष्ण ने कृष्णा अवतार में प्रेम की तपोभूमि वृन्दावन मे यमुना जी के तट पर ही अपनी बाल लिलाओ से ही अनेक ऋषि, महर्षी तथा संतो को आनंदीत किया अनेक राक्षसो का वध करके पृथ्वी को भार मुक्त किया भगवती यमुना का भक्ति स्वरूप होने के कारण उनके तट पर बसे श्री धाम वृन्दावन को भक्त तथा प्रेमीयों की नगरी कहते है

धन्यं वृन्दावनं तेन भक्तीर नृत्यती यत्र च
अर्थात वह श्री वृन्दावन धन है। जहा आज भी भक्ति युवा हो करके नृत्य करती है। उधो जैसे महाज्ञानीयो को पे्रम की दिव्य अनुभूति वृन्दावन के गोपीयो ने दिलायी यहा के बृजवासी कहते है की कृष्ण तन कृष्ण मन कृष्ण ही हमारो धन आठो याम उधो हमे कृष्ण से ही काम है। भगवती यमुना का अद्धभूत भक्ति स्वरूप जीव के जीवन मे दृढ़ निष्ठा से जीव को ब्रहम के प्रति अन्नयता पूर्ण पे्रम को दर्शाती है।

सरस्वती:
भगवती सरस्वती को लोग सरजु नदी के नाम से जानते है। शास्त्रो में उनका स्वरूप अद्वभूत व्यांग और वैराग्य का है। जैसे ज्ञान तत्व सवंद होते हुए भी अदृश्य है। वैसे ही ज्ञान और भक्ति के बीच मे भगवती सरजु अदृश्य है। सम्पूर्ण भारत वर्ष मे जीतने भी साधक हुये है। वो वैराग्य से मुक्त तथा विरक्त हुये संसार से वैराग्य लेने वाला पुरूष ही परमात्मा को चाहता है। सरजु नदी के तट पर बसा अयोध्या नगरी वैराग्य के प्रतिक है। जहां श्री भरत जी सम्पुर्ण राज्य का व्याग करके सिर्फ भगवान राम को चाहते है। भगवती सरजु का वैराग्य स्वरूपु होने के कारण उनके तट पर बसे हुये नगर क्षेत्र तथा गाॅवो में अद्वभूत साधक तथा संतो का प्रकट हुआ है। उन्ही के तटो पर अनेक स्थानो मे अनेक बार परमात्मा ने संत रूप में अवतार लिया है।

भगवती सरजु के पावन तट पर बिहार राज्य के सिवान जिले में ग्यासपुर नामक गाॅव है। जहाॅ भगवती सरजु पश्चिम से पूर्व की ओर कल कल निनाद करते हुये सम्पूर्ण क्षेत्र को पावन करती है। उनके उत्तर तट पर बसा ग्यासपुर ग्राम संत शिरोमणि साहिब बाबा की पावन जन्म स्थली तथा समाधी स्थली है। जब तक संत शिरोमणि साहिब बाबा उस धरा धाम पर प्रति वर्ष भगवती सरजु उनके चरणो को छुने आया करती है। सन् 19 वी में जब सरजु नदी के तट पर बना जलीये बांध टुटा और भगवती सरजु पूर्ण वेग से ग्यासपुर ग्राम में प्रवेश की कई मकानो के साथ साईपूर निवासी जग्रनाथसिद्धकी हाथीयो को वहा ले गयी तब सतं शिरोमणि साहिब बाबा ने भगवती सरजु को आदेश दिया था की अब इस गाॅव मे दुबारा प्रवेश मत करना तब से आज तक ग्यासपुर मे दुबारा बाढ़ नही आयी आज भी संत शिरोमणी साहिब बाबा की पावन समाधी ग्यासपुर ग्राम मे है। जहां अनेको भक्त तथा उनके अनुयायी नित्य प्रति बाबा के दर्शन करने आते है।