ध्यान
ध्यान:- चित्त की एकाग्रता को ध्यान कहते है, योग सूत्र में बताया है –
‘तत्र प्रत्ययकतानता ध्यानम्’
ध्यान तीन प्रकार का होता है –
स्थूल ध्यान:- अपने इष्टदेव का सगुण ध्यान स्थूल ध्यान कहलाता है।
ज्योतिध्र्यान:- परमात्मा स्वरूप कुण्डलिनी का ध्यान ही ज्योतिध्र्यान कहलाता है।
सूक्ष्म ध्यान:- कुण्डलिनी जाग्रत कर षट् चक्र वेधन करता हुआ सहस्त्रार चक्र में लीन होने को ही सूक्ष्म ध्यान कहते है। ऐसा योगी समस्त जाग्रत प्रपंचो से विनिर्मुक्त होकर परमात्मा में लीन हो जाता है, ऐसे साधक को अनायास ही अष्ट-सिद्धियां प्राप्त रहती है।