समाधि
समाधि:- मन और आत्मा का एकरूप हो जाना ही समाधि कहलाता है, हठयोग प्रदीपिका में कहा है –
तत्समं च द्वयोरैक्यं जीवात्म परमात्मनोः ।
प्रनष्ट सर्व संकल्पः समाधि सोभिधीयते ।।
उपरोक्त ‘अष्टांग’ पालन प्रत्येक साधक के लिए आवश्यक है इनमें दक्ष होने से ही साधक अपनी किसी भी प्रकार की साधना में सफल हो पाता है। अन्तश्चेतना जागरण ही प्रत्येक साधना की सफलता की कुंजी है, उपरोक्त ‘अष्टांग’ इस अन्तश्चेतना जागरण में विशेष सहायक रहता है।