नियम

नियम – पातंजल योग दर्शन में पाँच नियम बतलाये गये है।
शौच
सन्तोष
तप
स्वाध्याय
ईश्वर शरणागति

शौच – शरीर की बाह्य तथा अन्तःकरण की शुद्धि को शौच क्रिया कहते है। बाह्य शुद्धि का तात्पर्य है कि स्नान, नित्यक्रिया आदि अन्तः शुद्धि का तात्पर्य चित्त-एकाग्रता, इन्द्रिय-दमन आदि।

सन्तोष – हर परिस्थिति में संतुष्ट रह कर जीवन निर्वाह के अतिरिक्त किसी भी पदार्थ की ईच्छा न रखते हुए जीवन व्यतीत करने को ही सन्तोष कहते है।

तप – वर्ण, देश, काल तथा योग्यता के अनुसार स्वर्धम का पालन करते हुए मंत्रजप, व्रत, पुजा आदि के द्वारा भूख-प्यास नियंत्रण करके शर्दी, गर्मी आदि। दण्दों को सहन करने की कला को तप कहते है।

स्वाध्याय – अपने इष्ट के अनुसार मंत्र, यंत्र, तंत्र आदि का यथेष्ट एंव विभिन्न धर्म शास्त्रों की जानकारी को स्वाध्याय कहते है।

ईश्वर शरणागति – मन, वचन, कर्म से ईश्वर के प्रति समर्पित रह कर स्वधर्म का पालन करते हुए रहना ईश्वर शरणागति होती है।
हठयोग प्रदीपिका में ‘नियम’ के दस भेद बतलाये गयें है –
तप
सन्तोष
आस्तिकता
दान
ईश्वरआराधना
शुभ श्रवण
बुद्धि
मति
जप
यज्ञ