दरबार की महिमा

“ध्येय साहिब दरबार सदा”
मन को पुलकित कर देने वाला यह पावन दरबार योगेश्वर श्री साहेब बाबा की द्विव्य लीलाओं की अनुभूति कराने में सक्षम है। दरबार की महिमा अनंत है।
धन ग्यासपुर धाम है, धन साहिब दरबार ।
धन साहिब के रसिक जो, सुमिरै साहिब नाम ।। दरबार की दिव्य धरा पर जब भी कोई प्रेमी भक्त जन भाव बिभोर हृदय से आते हैं तो वह अनायास ही अनुभव करने लगते हैं की उनका हृदय असीम आनंद से भर जाता है और तब उनके मुख से दरबार की महिमा तथा साहिब बंदगी महामंत्र स्वतः ही झरने लगते हैं।

साहिब तेरा ठौर ठिकाना, तेरे रहन सहन के क्या कहने। साहिब तेरे आलिंगन से, लगते हैं सारे अमृत्वरस बहने।।

दरबार में प्रवेश करते ही भक्तो के सभी राग, द्वेष, पाप, कष्ट,दुःख,रोग सब दरबार की परम शक्तियों में विलीन हो जाता है तथा उस पहाड रुपी पीड़ा से निवारण दे कर उन्हें पवित्र पुष्प की भाति साहिब चरणो में नतमस्तक होने के लिए रूपांतरीत कर देता है तथा उसके उपरान्त जब भक्त जन‌ के दर्शन होते हैं तो मानो उनका चित पूर्ण रूप से पवित्र और भगवत कृपा की अनुभुती कराता है। दरबार की महिमा इस प्रकार से निर्जन के हृदय को भी भक्ति भाव में ऐसे डूबोती है कि जैसे देह बची ही ना हो। आत्मा मगन हो कर लगी है केवल दरबार में।

मन का साहिब दर हो जाना कितना अच्छा है।
धुला – धुला दर्पण हो जाना कितना अच्छा है।

यदि भक्त के हृदय में दरबार की छवि मन भावन हो तो यहा का अन्न, जल अमृत की समान प्राण रक्षक है। तथा दरबार की धूरी (भभूती) चन्दन की तरह अपने माथे पर लगाने से तो जैसे चमत्कार ही हो जाता है। यहां की भभूती प्रसादरूप में संकलपीत दृढ़ विश्वास के साथ धारण करने पर अनंत दुख को पल भर में दूर कर देता है।

साहिब दरबार मन भावन, जिसकी महिमा अद्भुत न्यारी है l
अन्न,जल,भभूती,वृक्ष,लताएँ,पावन धाम में सब प्यारी है।

उध्दव ! योग – साधन, ज्ञान-विज्ञान, धर्मानुष्ठान, जप-पाठ और तप – त्याग करूणा निधान साहिब बाबा को प्राप्त करने में उतनी समर्थ नहीं है जितनी की दिनों-दिन बढ़ने वाली अनन्य प्रेममयी दरबार की सेवा और भक्ति । भले ही कोई धन दौलत के अंबार पर खड़ा हो बढ़ा सताधीश हो उसका हृदय तो तपता ही रहता है लेकिन जिसको दरबार की सेवा का छोटा सा भी समय मिल जाता है, उसके हृदय में आकासमात ही शांति, शीतलता तृप्ती वास करती है। और फिर वह संसार के कुचक्रो से बच निकलता है।
दरबार की सेवा ही साहिब बाबा के भक्ति के योग्यतम गुण को हृदय में स्थानतरित करती है।

आधिक धन मिलने से, बड़ी सत्ता मिलने से, अधिक अधिकार मिलने से कोई भी जीव सुखी हो जाए तो ऐसा सामर्थय सांसारिक विषयों में नहीं है किन्तु जो भी भक्त जन दरबार कि सेवा में अपना सर्वस्व लुटा देता है तो धन, सता, व आधिकारों के बिना भी वह जीवन के सच्चे आनंद को पा लेता है तथा दरबार की महिमा से उसके हृदय में भगवत प्रीति, संतो के लिए प्रेम, सत्कर्म में रुचि तथा परमेश्वर श्री साहिब बाबा को पाने की ललक जाग उठती है। तथा उस भक्त का जीवन धन्य हो जाता है, उसका कुल, माता-पिता तथा जीस भी स्थान पर वह निवास करता है वह धरती भी धन्य हो जाती है। दरबार की सेवा, सत्संग, संत- सानिध्य जिसको भी मिल जाए वह इतना ऊँचा उठ जाता है कि स्वयं परमेश्वर साहिब बाबा का वह सखा बन जाता है, तथा सत्पुरुषो में उसकी गणना होने लगती है और संसार में सम्मान का पात्र बन पूज्यनीय हो जाता है।