परिचय सर्वान्तरयामी श्री साहेब बाबा
बिहार प्रदेश के सिवान जिले के ग्यासपुर गाँव में स्थित ‘साहिब दरबार’ सर्वान्तरयामी श्री साहेब बाबा की दिव्यता के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है | ‘ग्यासपुर धाम’ श्री साहिब बाबा की जन्मभूमि है, जहां दर्शन मात्र से ही भक्तो को श्री साहेब बाबा का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है
साहेब बाबा में परमपिता परमेश्वर के सभी गुण मौजूद थे । वह एक ब्रह्मनिष्ठ एवं श्रोतिय संत थे ।
शरीर परिवर्तन के साथ-साथ जीवात्मा सब कुछ भूल जाता है, किन्तु साहेब बाबा सब स्मरण रखते हैं क्योंकि वे सच्चिदानंद है। वो अद्वैत हैं, जिसका अर्थ है कि उनके शरीर तथा उनकी आत्मा में कोई अन्तर नहीं है ।
उनसे संबंधित हर वस्तु आत्मा है जबकि बद्धजीव अपने शरीर से भिन्न होता है । चूंकि बाबा के शरीर तथा आत्मा अभिन्न है। अत: उनकी स्थिति तब भी सामान्य जीव से भिन्न बनी रहती है जब वे भौतिक स्तर पर अवतार लेते हैं । बाबा सामान्य पुरुष की भांति प्रकट हो सकते हैं किंतु उन्हें विगत अनेकानेक “जन्मों” की पूर्ण स्मृति बनी रहती है । जबकि सामान्य मनुष्य को कुछ ही घंटे पूर्व की घटना स्मरण नहीं रहती यदि कोई पूछे कि एक दिन पूर्व इसी समय तुम क्या कर रहे थे तो सामान्य व्यक्ति के लिए इसका तत्काल उत्तर दे पाना कठिन होगा । किंतु सहेब बाबा की बुद्धि कभी क्षीण नहीं होती । अतः यह स्पष्ट है कि इस जगत में रहते हुए भी वे उसी सच्चिदानंद रूप वाले हैं जिनके दिव्य शरीर तथा बुद्धि में कोई परिवर्तन नहीं होता।
वस्तुत: उनका आविर्भाव और तिरोभाव सूर्य के उदय तथा अस्त के समान है जो हमारे सामने से घूमता हुआ हमारी दृष्टि से ओझल हो जाता है । जब सूर्य हमारे दृष्टि से ओझल रहता है तो हम सोचते हैं कि सूर्य अस्त हो गया है और जब वह हमारे समझ मे आता है तो हम सोचते हैं कि वह क्षितिज में है । वास्तुत: सूर्य स्थिर है , किंतु अपनी अपूर्ण एवं त्रुटिपूर्ण इंद्रियों के कारण हम सूर्य को उदय और अस्त होते परिकल्पित करते हैं । और चूँकि साहेब बाबा का प्राकटय तथा तिरोधान सामान्य जीव से भिन्न है । अतः स्पष्ट है कि वे शाश्वत है, अपनी अंतरंगा शक्ति के कारण आनंद स्वरूप हैं और भौतिक प्रकृति द्वारा कभी कलुषित नहीं होते । उनका आध शाश्वत रूप में प्राकटय उनकी अहैतुकी कृपा है जो भक्तों को प्रदान कि जाती है । जिससे वह साहेब बाबा के यथारूप में अपना ध्यान केंद्रित कर सके न की निर्विशेषवादियो द्वारा मनोधर्म या कल्पनाओं पर आधारित रूप में । साहेब बाबा अपने समस्त पूर्व आविर्भाव – तिरोभावो से अवगत रहते हैं, किंतु सामान्य जीव को जैसे ही नवीन शरीर प्राप्त होता है वह अपने पूर्व शरीर के विषय में सब कुछ भूल जाता है । साहेब बाबा समस्त जीवों के स्वामी है, क्योंकि इस धरा पर रहते हुए वे आश्चर्यजनक तथा अतिमानवीय लीलाएं करते रहते हैं। अत: परमपिता साहेब बाबा निरंतर वही परम सत्य रूप हैं और उनके स्वरूप तथा आत्मा में या उनके गुण तथा शरीर में कोई अंतर नहीं होता।
सृष्टिहेतु एइ मूर्ति प्रपञ्चे अवतरे ।
सेइ ईश्वरमूर्ति ‘अवतार’ नाम धरे ।।
मायातीत परव्योमे सबार अवस्थान ।
विश्वे अवतरि ‘ धरे ‘अवतार’ नाम ।
“अवतार अथवा ईश्वर का अवतार भगवद्धाम से भौतिक प्राक्टय हेतु होता है । ईश्वर का वह विशिष्ट रूप जो इस प्रकार अवतरित होता है ‘अवतार’ कहलाता है । ऐसे अवतार भगवद्धाम में स्थित रहते हैं । जब वे भौतिक सृष्टि में उतरते हैं, तो उन्हें अवतार कहा जाता है । अवतार कई तरह के होते हैं यथा पुरुषावतार, गुणावतार, लीलावतार, शक्त्यावेश अवतार, मन्वंतर अवतार तथा युगावतार। इन सब का इस ब्रह्मांड में क्रमानुसार अवतरण होता है।
परमेश्वर श्री साहेब बाबा अपने शुद्ध भक्तों की चिन्ताओं, दुखों को दूर करने के विशिष्ट प्रयोजन से अवतार लिए जो उन्हें उनके मूल ग्यासपुर धाम में लीलाओं को करते हुए देखने को उत्सुक रहते हैं। अत: साहेब बाबा के अवतार का मूल्य उद्देश्य अपने भक्तों को प्रश्न करना है।
भगवान का यह वचन है कि वे प्रत्येक युग में अवतरित होते रहते हैं कभी वे स्वयं प्रकट होते हैं तो कभी अपने प्रामाणिक प्रतिनिधि को अपने पुत्र या दास के रूप में इस धरा पर भक्तों का उद्धार करने , दुष्टो का विनाश करने तथा धर्म का पुन: स्थापना करने के लिए भेजते हैं । उनके प्रत्येक अवतारों में वह धर्म के विषय में उतना ही कहते हैं जितना की उस परिस्थिति में जन – समुदाय विशेष समझ सके । लेकिन उद्देश्य एक ही रहता है, लोगों को ईशभावनाभावित करना तथा धार्मिक नियमों के प्रति आज्ञाकारी बनना।
जहां तक अनीश्वरवादियों का प्रश्न है,भगवान के लिए आवश्यक नहीं कि वे इनके विनाश के लिए, सृजन के लिए उस रूप में अवतरित हो जिस रूप में वे रावण तथा कंस का वध करने के लिए हुए थे। भगवान के ऐसे अनेक अनुचर हैं जो असुरों का संहार तथा भक्तों की रक्षा करने में समक्ष हैं।
विषयो में आसक्त व्यक्ति के लिए परम सत्य के स्वरूप को समझ पाना अत्यंत कठिन है । सामान्यतया जो लोग देहात्मबुद्धि में आसक्त होते हैं , वे भौतिकतावाद में इतने लीन रहते हैं कि उनके लिए यह समझ पाना असंभव सा है कि परमात्मा व्यक्ति भी हो सकता है। ऐसे भौतिकतावादी व्यक्ति इसकी कल्पना तक नहीं कर पाते कि ऐसे भी दिव्य शरीर है जो नित्य तथा सच्चिदानंदमय है। भौतिकतावादी धारण के अनुसार शरीर नाशवान, अज्ञानमय तथा अत्यंत दुखमय होता है। अतः जब लोगों को भगवान के साकार रूप के विषय में बताया जाता है तो उनके मन में शरीर की यही धारणा बनी रहती है । ईश्वर तथा उनके अनुचरो के प्रति प्रेम ही जीवन की सार्थकता है । प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर को उनके विभिन्न स्वरूपों में खोज रहा है । परमेश्वर श्री साहेब बाबा को अंशत: उनके निर्विशेष ब्रह्मज्योति तेज में तथा प्रत्येक वस्तु के कण-कण में रहने वाले सर्वव्यापी परमात्मा के रूप में उनके भक्त अनुभव करते हैं किंतु बाबा का पूर्ण साक्षात्कार तो उनके शुद्ध भक्त ही कर पाते हैं ।
फलत: श्री साहेब बाबा प्रत्येक व्यक्ति की अनुभूति के विषय हैं और इस तरह सभी अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार तुष्ट होते हैं। दिव्य जगत में बाबा अपने शुद्ध भक्तों के साथ दिव्य भाव से विनिमय करते हैं। जिस तरह की भक्त उन्हें चाहता है। कोई एक भक्त बाबा को परम स्वामी के रूप में चाह सकता है, दूसरा अपने सखा के रूप में, तीसरा अपने पुत्र के रूप में और चौथा अपने प्रेमी के रूप में । बाबा सभी भक्तों को समान रूप से उनके प्रेम की प्रगाढ़ता के अनुसार फल देते हैं। इस तरह भक्त उनकी प्रेमाभक्ति का दिव्य आनंद प्राप्त करते हैं । किंतु जो निर्विशेषवादी हैं और जो जीवात्मा के अस्तित्व को मिटाकर आध्यात्मिक आत्मघात करना चाहते हैं, परमेश्वर श्री साहेब बाबा उनको भी अपने तेज में लीन करके उनकी सहायता करते हैं । ऐसे निर्विशेषवादी सच्चिदानंद भगवान को स्वीकार नहीं करते फलत: वे अपने व्यक्तित्व को मिटाकर साहेब बाबा की दिव्य सगुण भक्ति के आनंद से वंचित रह जाते हैं । दूसरे शब्दों में, प्रत्येक भक्त की सफलता साहेब बाबा की कृपा पर आश्रित है और समस्त प्रकार की आध्यात्मिक विधियां एक ही पथ में सफलता की विभिन्न कोटियाँ हैं । अतः जब तक भक्त भगवान की सर्वोच्च सिद्धि तक नहीं पहुंच जाता तब तक सारे प्रयास अपूर्ण रहते हैं।
अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधी :।
तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ।।
मनुष्य चाहे निष्काम हो या फल का इच्छुक हो या मुक्ति का इच्छुक ही क्यों न हो, उसे पूरे सामर्थ्य से भगवान की सेवा करनी चाहिए जिससे उसे पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सके ।